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जिनिगी  के  समय  हेरा के पवले  के  बाटे

जिनिगी  के  समय  हेरा के पवले  के  बाटे बूढ़ी   समइया   पथ  पर  धवले  के  बाटे   बचपन  से  गोड़  सम्हार  के राखऽ  ए भाई गिरल  मुसाफिर  कबो   उठवले   के  बाटे   हँसत  खेलत  अदमी के  गर्दन  रेतल जाता लेकिन  मूअल  आदमी 

ईमान  सबका लगे ओरा  गइल बा

ईमान  सबका लगे ओरा  गइल बा लाज  कवनों ठंइया  हेरा गइल बा   अब  केहूए  त झण्डा  उठइबे करी अनीति  से करेजवा पीरा  गइल बा   ई देश, ई जनता के भला कइसे होई साहब लोग के जांगर कीरा गइल बा
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