जाति व्यवस्था क्या है आइये जानते है इस बारे में

 

जाति व्यवस्था क्या है आइये जानते है इस बारे में

 

जाति व्यवस्था क्या है

 

 

जाति व्यवस्था क्या है

 

परंपरागत भारतीय समाज की विशेषताओ का अन्यतम विशेषता है जाति व्यवस्था। दोस्तों, क्या है ये जाति व्यवस्था ?, भारतीय समाज में इसका महत्व क्या है ? किस तरह ये समाज व्यबस्था को परिचालित करते है ? क्या आप जानना नहीं चाहोगे ?

 

तो चलिए आज की इस लेख में हम जाति व्यवस्था को ही अध्ययन करते है।

 

दराचल परंपरागत हिन्दू धर्म में मानव समाज को 4 मुख्य भागो में बाटा गया है। इन चार भागो को जिस व्यबस्था के दुवारा वैदिक युग में स्तरीकृत किआ गया था उसको ‘वर्ण व्यबस्था के नाम से जाना जाता था।

 

ये वर्ण व्यबस्था पूर्ण रूप से ‘कर्म’ के ऊपर आधारित था लेकिन दोस्तों समय और समाज कभीभी स्थिर नहीं रहता, ये बदलता है। वैदिक युग में जो वर्ण व्यबस्था कर्म के ऊपर आधारित था वो वर्ण व्यबस्था ‘महाकाव्यिक’ (महाभारत, रामायण) युग में जन्म के ऊपर आधारित होने लगा।

 

समय के साथ साथ इसने अपना नाम बदलकर वर्ण से जाति का रूप धारण किआ।

 

जाति व्यवस्था क्या है

 

 

 

दोस्तों जाति व्यवस्था को सरल शब्द में अगर हम प्रकाशित करे तो बोल सकते है की, “जाति व्यवस्था वो एक बंध सामाजिक संस्तरण की व्यबस्था है जो जन्म के ऊपर प्रतिष्ठित है और जो हिंन्दू समाज को चार मुख्य उच्च-निम्न भागो में बाटता है”.

 

 

 

जाति व्यवस्था का 4 मुख्य भाग और उनके सामाजिक स्थान

 

 

जाति व्यवस्था क्या है

 

  1. ब्राह्मण : – हिन्दू धर्म के चार जातिओ में ब्राह्मण को सबसे उच्च स्थान प्रदान किआ जाता है। परंपरा अनुसार ब्राह्मणो का कार्य होता है यज्ञ और पूजा पाठ करना। हिन्दू समाज में एक विस्वास है ब्राह्मणो के दुवारा किए गए पूजा-पाठ के दुवारा ही यज्ञ को सफलता प्राप्त होता है और भगवान संतुस्ट होते है।

 

  1. क्षत्रिय : – जाति व्यवस्था में दूसरे पायदान में आते है क्षत्रिय जाति। परंपरागत विस्वास अनुसार क्षत्रिय लोग तेजस्वी और साहसी होते है।  इनका काम होता है देश या राज्य का शासन करना तथा अपने शत्रुओ के विरुद्ध युद्ध करके उनका नाश करना।

 

  1. वैश्य : – प्रत्येक समाज को आगे बढ़ने के लिए धन या अर्थ की जरूरत पड़ती है और अर्थ की बृद्धि के लिए प्रत्येक समाज को व्यापर करना भी जरूरी होता है। दोस्तों वैश्य लोगो का कार्य था व्यापर करना। ये भाग जाति व्यवस्था का तीसरा मुख्य भाग था।

 

  1. शूद्र : – शूद्र का स्थान हिन्दू समाज में सबसे निचले पायदान पर था। शूद्र लोगो का कार्य था इससे ऊपर के तीन जातिओ की सेवा करना।

 

 

 

जाति व्यबस्था का चार मुख्य चरित्र

 

  1. जन्म आधारित प्रथा : – सबसे पहले तो जाति व्यबस्था पूर्ण जन्म आधारित सामाजिक व्यबस्था है। किसी व्यक्ति का जाती क्या होगा ये निर्भर करेगा उसकी जन्म के ऊपर। जो ब्राह्मण परिवार में जनम लेगा वो ब्राह्मण ही होगा और शूद्र परिवार में जनम लेगा वो शूद्र ही होगा।

 

कोई कितना भी अच्छा या बुरा कर्म क्यों ना कर ले एक शूद्र कभीभी ब्राह्मण नहीं बन सकता और एक ब्राह्मण कभीभी शूद्र नहीं बन सकता।

 

 

  1. हिन्दू धर्म के अंतर्गत : – जाति व्यबस्था पूर्ण रूप से हिन्दू धर्म के अंतर्गत व्यबस्था है। आपको इसलाम, क्रिस्चियन, बुद्धिस्ट या किसी अन्य धर्म में जाती व्यबस्था देखने नहीं मिलेगा।

 

  1. प्रत्येक जाति का भिन्न कर्म : –  प्रत्येक जाति का अलग अलग कर्म होता है और ये कठोर रूप से निर्णीत होते है। कोई भी अपने कर्म का त्याग करके दूसरा कर्म नहीं कर सकता।

 

जैसे की ब्राह्मण कर्म है पूजा-पाठ करना, क्षत्रिय का कर्म है राज्य शासन करना, वैश्य का कर्म है व्यापर करना और शूद्र का कर्म है इससे उच्च स्थान के तीनो जातिओ की सेवा करना।  यहाँ अगर कोई मनुष्य अपना कर्म त्याग करके कोई अन्य कर्म करता है तो उसको सामाजिक नियम अनुसार कठोर दंड दिआ जाता है।

 

4 उच्च-निम्न का भाग : – जाति प्रथा में उच्च-निम्न का स्तर होता है। यहाँ ब्राह्मणो का स्तर सबसे ऊचा होता है और शुद्रो का स्तर सबसे निम्न होता है। व्यक्ति के मृत्यु तक इस स्तरीकरण का परिवर्तन नहीं हो सकता।

 

जाति व्यवस्था क्या है

 

वर्तमान समय में जाति व्यवस्था की पतन का 3 मुख्य कारण

 

  1. आधुनिक शिक्षा का विस्तार। इसके कारण आज लोग समझने लगे है की व्यक्ति का जनम महत्वपूर्ण विषय नहीं है, बल्कि व्यक्ति का कर्म ही उसका अचल परिचय है और एहि उसकी सामाजिक प्रस्थिति निर्णय का मूल मंत्र भी है।

 

  1. भारत की संबिधान भी जाति व्यबस्था की पतन का अन्यतम कारण है। आज भारत देश में हर एक जाति के लोग एक समान है। किसी को भी जाति, धर्म के ऊपर निर्भर करके उच्च-निम्न रूप में बाटा नहीं जा सकता।

 

अगर कोई व्यक्ति इसके ऊपर निर्भर करके किसी व्यक्ति के अधिकार को नस्ट करने की कोसिस करता है तो वो भारतीय संबिधान अनुसार दंड का भागिदार होगा। भारतीय संबिधान की 16, 17, 18, 19 अनुच्छेद के दुवारा प्रत्येक जाति के लोगो को एक समान अधिकार प्रदान किआ गया है।

 

 

  1. नगरीकरण : – दोस्तों एक नगर में हर एक जाति, धर्म, वर्ण, भाषा, संस्कृति के लोग एक साथ रहते है। व्यस्तता ज्यादा होने के कारण यहाँ लोगो के पास जाति, धर्म, वर्ण, भाषा इत्यादि विषयो को लेकर भेदभाव करने को कोई समय नहीं होता।

 

इसके कारण भारत में आज जितनी तेजी से नगरों की मात्रा बढ़ रही है उतनी तेजी से जाती व्यबस्था का पतन भी हो रही है। इसीलिए नगरीकरण भी जाति व्यबस्था की पतन का अन्यतम कारण है।

 

 

जाति व्यवस्था क्या है

 

निष्कर्ष

 

जाती व्यबस्था के ऊपर ये छोटा सा लेख आपको कैसा लगा, हमें निचे टिप्पणी करके जरूर बताना।

 

यहां पढ़ें –  धर्म से संबंधित निबंध 

 

इस पोस्ट के लेखक – आकाश गोगोई 

 

 

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