बस ऊहे आदमी हार के मुँह ना देखी कबो

बस ऊहे आदमी हार के मुँह ना देखी कबो

 

 

 

 

बस ऊहे आदमी हार के मुँह ना देखी कबो

जेकरा वक्त के मार सहत रहेके आदत बा

 

ई जमाना कदम-कदम पर तंज कसेला पर

ऊ कहबे करी जेकरा कहत रहेके आदत बा

 

दीया के जरेके बा त जरबे करी हर हाल में

हवा भी ना रुकी एकरा बहत रहेके आदत बा

 

लोग धरती पर केतना अत्याचार करत बा पर

ई धरती माई ह माई के सहत रहेके आदत बा

 

इहंवा कर्म से नाहीं

 

इहंवा कर्म से बस नाहीं जात से चिन्हल जाता

फेरु सभे महाभारत के राह पर चलल जाता

 

जब भी कभी कालेज में प्रेटिकल होत बाटे

त कवनो द्रोण से वीर एकलव्य छलल जाता

 

देखऽ रसरी के घमण्ड केतना निचाई पे बा

अइठन जात नइखे पर आगी में जरल जाता

 

छोट लोग के दासा कि जइसे आम के पेड़ ह

हर साल झारल जाता हर साल फरल जाता

 

जबसे दलितन के तरक्की के राह साफ भइल

कुछ लोग देखके भरमुँह माटी लिहल जाता

 

ईश्वर जब सबके हऊँए त सबके पूजे दिहल जा

काहे मंदिर की चउखट पर ऊँचनीच बिनल जाता

 

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